मेरा नाम सौरभ है। आपने मेरी मॉम को देख कर कोई नहीं कह सकता कि वो 46 साल की हैं। उनकी चौड़ी गांड और उभरी हुई चूचियाँ किसी जवान औरत से कम नहीं लगतीं। मोहल्ले के मर्द उनकी तरफ उसी तरह देखते हैं, जैसे मैं भाभी या दीदी को देखता था। और सच कहूँ तो, मैं खुद भी मॉम की गांड को कई बार ललचाई नजरों से देख चुका था।
यह बात तब की है जब परिवार में गांव जाने का कार्यक्रम बना था। मॉम ने कहा –
“सौरभ, कल गांव चलना है। पूजा-पाठ है चाचा के यहाँ।”
मैंने मन ही मन सोचा कि गांव जाकर क्या करूंगा। भाभी और दीदी तो यहीं रुक रही थीं। लेकिन फिर मैंने कहा –
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“प्रीति दीदी को भी साथ ले चलो, मॉम।”
मॉम ने साफ मना कर दिया –
“उसके एग्जाम चल रहे हैं। तुम ही चलो।”
उस वक्त मुझे समझ नहीं आया कि मॉम के साथ इस सफर में मुझे क्या मिलने वाला था। मैंने बस हामी भर दी।
रात को मैंने दीदी के कमरे में जाकर उसे बताया कि हम मॉम के साथ गांव जा रहे हैं। दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा –
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“तुम मॉम की गांड घूरते हो, मैंने देखा है। तो क्यों न गांव जाकर उसी को पटाने की कोशिश करो?”
पहले तो मैं चौंक गया लेकिन फिर यह सोचकर मुस्कुराया कि दीदी की बात गलत भी नहीं थी।
शाम को हम लोग डिपो पहुँच गए। 8 बजे वाली बस से हमें गांव जाना था। मैं और मॉम बस में चढ़े।
मॉम ने पीली रंग की साड़ी पहनी थी, जो उनके भारी चूतड़ को और उभार रही थी। उन्होंने नीचे पिंक ब्लाउज पहन रखा था। मैं पीछे वाली सीटों की तरफ गया और मॉम को खिड़की के पास बैठा दिया। मैं खुद उनके बगल में बैठ गया।
बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी। कुछ यात्री आगे की सीटों पर थे और कुछ लोग सीट पकड़ कर सोने की तैयारी कर रहे थे। ड्राइवर और कंडक्टर आपस में हंसी-मज़ाक कर रहे थे।
“आज तो आधी बस ही खाली है, लगता है आराम की सवारी होगी,” कंडक्टर ने ड्राइवर से कहा।
मैंने धीरे से मॉम के कान में कहा –
“आराम से तो मैं करूंगा आज।”
मॉम ने मेरी तरफ देखा और हल्की मुस्कान दी। उन्होंने शायद मेरी बात का मतलब नहीं समझा था, या समझकर भी अनदेखा कर दिया था।
बस धीरे-धीरे चलने लगी और लाइट बंद कर दी गई।
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जब बस ने पहला गड्ढा लिया, तो मैं झटका खाकर मॉम के करीब आ गया। मेरा हाथ उनकी जांघ पर टिक गया। मैंने जानबूझकर अपना हाथ वहीं रखा।
मॉम ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। बस की हलचल के बीच मेरा हाथ धीरे-धीरे उनकी जांघों पर ऊपर नीचे खिसकने लगा।
“बस ध्यान से बैठ, हाथ मत मार इधर-उधर,” मॉम ने हँसते हुए कहा।
लेकिन उनकी आवाज़ में विरोध नहीं था।
कुछ समय बाद मैंने अपना सिर मॉम के कंधे पर रख दिया और आँखें बंद कर लीं, जैसे मैं थका हुआ हूँ।
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बस में हल्की-हल्की खड़खड़ाहट हो रही थी। आगे बैठे एक आदमी ने कंडक्टर से पूछा –
“भाई, ये बस कितने बजे तक पहुंचेगी गांव?”
कंडक्टर ने जवाब दिया –
“रात 12 बजे तक पहुँच जाएंगे, कोई रुकावट न हुई तो।”
मैंने धीरे-धीरे अपना हाथ खिसकाया और मॉम की साड़ी के ऊपर से उनकी जांघों को दबाया। इस बार मॉम ने मेरी तरफ देखा, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा।
जब बस ने फिर झटका खाया, तो मेरा हाथ उनकी चूत के और करीब पहुँच गया। मैंने हल्के से अपनी उंगलियां उनकी जांघों के बीच घुसा दीं। मॉम ने धीरे से मेरा हाथ हटाया, लेकिन उनकी पकड़ बहुत ढीली थी।
मुझे समझ आ गया कि खेल शुरू हो चुका है।
करीब आधे घंटे बाद बस ने किसी ढाबे के पास ब्रेक लिया। ड्राइवर और कंडक्टर दोनों बाहर चाय पीने चले गए।
मॉम ने भी खिड़की से बाहर झाँका, लेकिन वो कहीं नहीं उतरीं।
मैंने धीरे से उनके कान में कहा –
“मॉम, बाहर चाय नहीं पीनी?”
मॉम ने हंसते हुए कहा –
“नहीं”
बस फिर से चल पड़ी। इस बार मैंने मॉम की साड़ी के अंदर हाथ डाल दिया। मेरी उंगलियां उनकी नंगी जांघों तक पहुँच चुकी थीं। मैंने महसूस किया कि उन्होंने पैंटी नहीं पहनी थी।
मॉम ने धीरे से मेरी तरफ देखा और हल्की आवाज़ में कहा –
“सौरभ, कुछ मत कर, लोग देख लेंगे।”
मैंने बस मुस्कुराते हुए अपना सिर उनके गोद में रख लिया। अब मेरी नाक उनके ब्लाउज के पास थी, और उनकी खुशबू मुझे और उत्तेजित कर रही थी।
मैं मॉम की गोद में सिर रखे हुए था, और उनकी भीनी खुशबू मुझे और पागल कर रही थी। बस की लाइट अब पूरी तरह बंद थी, सिर्फ खिड़की से आती हल्की चांदनी सीटों पर पड़ रही थी।
मॉम ने धीरे से मेरी पीठ पर हाथ फेरा, जैसे मैं सच में थक कर सो गया हूँ। लेकिन मेरी सांसों की रफ़्तार बता रही थी कि मैं सोने का नाटक कर रहा था।
बस के अगले झटके के साथ मैं और करीब खिसक गया, मेरा चेहरा अब उनकी चूचियों के ठीक नीचे था। मैंने धीरे से अपनी नाक उनके ब्लाउज के पास घुमाई। मॉम ने हल्की करवट बदली लेकिन मुझे हटाया नहीं।
“सौरभ… ठीक से बैठो,” उन्होंने धीरे से कहा, लेकिन उनकी आवाज में नर्मी थी, कोई सख्ती नहीं।
मैंने हल्के से उनकी जांघों पर हाथ रखा और उंगलियां उनकी साड़ी के अंदर घुसा दीं। मेरी उंगलियां अब उनके चिकने बदन को छू रही थीं।
मॉम की सांसें तेज होने लगी थीं, लेकिन उन्होंने फिर भी मुझे रोका नहीं।
बस के एक और झटके के साथ मैंने अपनी उंगलियां उनकी चूत के और करीब कर दीं। अब मैं साफ-साफ महसूस कर सकता था कि मॉम पूरी तरह भीग चुकी थीं।
“सौरभ… मत कर… कोई देख लेगा…” मॉम ने धीरे से मेरा हाथ पकड़ लिया, लेकिन उन्होंने उसे हटाया नहीं।
मैंने और करीब खिसकते हुए उनके कान में फुसफुसाया –
“मॉम… आप बहुत सुंदर हो… मुझे रोक क्यों रही हो?”
उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, बस हल्की सांसें लेती रहीं।
आगे की सीट पर बैठे दो आदमी आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे।
“भाई, ये ड्राइवर बड़ा आलसी है। हर ढाबे पर रुक जाता है,” एक ने कहा।
“अरे, रुकने दो, आराम से पहुँचना है,” दूसरे ने जवाब दिया।
उनकी बातें सुनकर मैं मुस्कुराया। मॉम ने मेरी हंसी महसूस की और धीरे से मेरी तरफ देखा।
“क्या चल रहा है तेरे दिमाग में?” मॉम ने पूछा।
मैंने उनकी जांघ पर उंगलियां फेरते हुए कहा –
“बस यही सोच रहा हूँ कि आज की रात बहुत लंबी है।”
मॉम ने हल्की मुस्कान दी और बाहर देखने लगीं, लेकिन मैंने देखा कि उनकी नजरें अब बार-बार मुझपर पड़ रही थीं।
थोड़ी देर बाद बस फिर गड्ढे से गुजरी, और इस बार मैंने मॉम के ब्लाउज के ऊपर से उनकी चूचियों को हल्के से दबा दिया। मॉम के शरीर में हल्का झटका लगा लेकिन उन्होंने कोई विरोध नहीं किया।
“सौरभ… मत करो…” उन्होंने फिर धीरे से कहा, लेकिन उनकी आवाज में वह मजबूती नहीं थी जो होनी चाहिए थी।
मैंने धीरे-धीरे उनके ब्लाउज के अंदर हाथ डाल दिया और उनकी निप्पल को छू लिया।
“आह…” मॉम के मुंह से हल्की आवाज निकली, लेकिन उन्होंने मुंह पर हाथ रख लिया ताकि कोई सुन न सके।
मैंने धीरे से उनके कान में कहा –
“मॉम, आज कोई रोकने वाला नहीं है।”
मॉम ने धीरे से मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में एक अलग सा नशा था।
अब मेरा हाथ मॉम के ब्लाउज के अंदर था, और मैं उनकी निप्पल को हल्के-हल्के मसल रहा था। मॉम ने अपनी टांगें थोड़ी और फैला दीं, जिससे मेरा हाथ उनकी चूत के और करीब आ गया।
मुझे साफ महसूस हुआ कि मॉम पूरी तरह तैयार थीं।
“बस ध्यान रखना… कोई देख न ले,” उन्होंने धीरे से कहा और अपनी आंखें बंद कर लीं।
अब बस में हल्की आवाजें आ रही थीं, लेकिन मैं और मॉम अपनी ही दुनिया में थे।
करीब आधे घंटे बाद बस फिर एक ढाबे पर रुकी। इस बार ड्राइवर ने कहा –
“यहाँ आधे घंटे का ब्रेक है। चाय पानी कर लो।”
मैंने मॉम की तरफ देखा और मुस्कुराया –
“उतरें क्या?”
मॉम ने हल्का सिर हिलाते हुए कहा –
“नहीं… यहीं ठीक हूँ।”
बस में अब सिर्फ हम दोनों थे, बाकी सारे लोग ढाबे पर चाय-सिगरेट पीने बाहर निकल गए थे। हल्की पीली रोशनी में बस की सीटों के बीच सन्नाटा पसरा हुआ था। खिड़की से आती चांदनी मॉम के चेहरे पर पड़ रही थी, जिससे उनका चेहरा और ज्यादा निखर रहा था।
मैं मॉम के और करीब सरक गया। मेरा हाथ अब उनकी साड़ी के अंदर था और उनकी नंगी जांघों को सहला रहा था। मॉम ने मेरी तरफ देखा, लेकिन उनकी आँखों में कोई विरोध नहीं था।
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“सौरभ… कोई आ गया तो?” मॉम ने धीरे से कहा, लेकिन उनकी आवाज में कोई सख्ती नहीं थी।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा –
“कोई नहीं आएगा मॉम, सब लोग बाहर हैं… और अगर कोई आ भी गया तो हम संभाल लेंगे।”
मॉम ने मेरी तरफ देखा और हल्की सांस भरकर खिड़की के बाहर देखने लगीं। मैं धीरे-धीरे उनकी साड़ी को ऊपर खिसकाने लगा। अब उनकी पूरी जांघें मेरी आँखों के सामने थीं।
“तू बहुत बदल गया है सौरभ… पहले ऐसा नहीं था,” मॉम ने धीरे से कहा।
मैंने उनके निप्पल को हल्के से दबाते हुए फुसफुसाया –
“मॉम, आप भी तो बहुत खूबसूरत हो… खुद को देखो ज़रा।”
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मॉम ने कुछ नहीं कहा, बस हल्का सा मुस्कुराईं।
अब मेरी उंगलियां उनकी चूत के करीब पहुंच चुकी थीं। मैंने महसूस किया कि वो पूरी तरह गीली हो चुकी थीं। मॉम ने अपनी टांगें थोड़ा और फैला दीं।
मैंने धीरे-धीरे उनकी चूत पर उंगलियां फेरनी शुरू कर दीं। मॉम की सांसें तेज हो गई थीं, लेकिन वो चुपचाप सीट पर बैठी थीं।
तभी बस में ड्राइवर और कंडक्टर की हंसी की आवाज आई, जो बाहर खड़े होकर किसी मजाक पर हंस रहे थे। मॉम एकदम चौक गईं और मेरी उंगलियों को अपनी चूत से हटाने लगीं।
“सौरभ… बस कर, कोई देख लेगा,” मॉम ने धीरे से कहा, लेकिन उनकी पकड़ ढीली थी।
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मैंने मॉम की तरफ देखा और उनके कान में फुसफुसाया –
“कोई नहीं देखेगा मॉम… सब बाहर हैं।”
मॉम ने हल्के से सिर हिलाया और मेरी उंगलियों को फिर से चूत के पास आने दिया।
मैंने धीरे से मॉम की साड़ी और ऊपर कर दी, जिससे उनकी चूत साफ दिखाई देने लगी। मॉम ने पैंटी नहीं पहनी थी, और उनकी चिकनी चूत मुझे और पागल कर रही थी।
मैंने हल्के से उनके होंठों को चूमा। मॉम ने कुछ सेकंड तक कुछ नहीं किया, फिर धीरे से मेरी पीठ पर हाथ फेरने लगीं।
अब मेरा लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था, और मॉम भी इसे महसूस कर रही थीं।
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“तू पागल है सौरभ…” मॉम ने मुस्कुराते हुए कहा।
मैंने उनकी चूत पर धीरे से उंगली घुमाते हुए कहा –
“हाँ मॉम… और इसके लिए सिर्फ आप ज़िम्मेदार हो।”
मॉम ने हल्की सिसकारी ली, लेकिन उन्होंने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की।
तभी अचानक बस के अंदर लाइट जल गई।
ड्राइवर और कुछ यात्री बस में वापस आ रहे थे। मॉम ने तेजी से अपनी साड़ी ठीक की और बैठ गईं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। मैं भी सीधा बैठ गया, लेकिन मेरी आँखें अब भी मॉम की तरफ ही थीं।
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ड्राइवर ने बस चलानी शुरू की, और मॉम ने मेरी तरफ देखा।
“अभी नहीं सौरभ… गांव पहुँचकर बात करेंगे,” मॉम ने फुसफुसाकर कहा और मुस्कुराईं।
मैंने सिर हिलाया, लेकिन मेरी नजरें उनकी चूचियों पर ही टिकी थीं।
बस धीमे-धीमे आगे बढ़ रही थी। अब तक सभी यात्री वापस अपनी सीटों पर आ चुके थे। बस के भीतर हल्की फुसफुसाहट और सीटों की चरमराहट के अलावा कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। लेकिन मेरे लिए माहौल कुछ और ही था – मॉम की गर्म सांसें, उनके उभार और उनका स्पर्श अब तक मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन पैदा कर रहे थे।
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मॉम खिड़की के बाहर देख रही थीं, लेकिन मैं उनकी ओर ही देख रहा था। मेरी नजरें बार-बार उनकी साड़ी के नीचे झांकने की कोशिश कर रही थीं। वो अब भी शांत बैठी थीं, लेकिन उनकी सांसों की हल्की आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी।
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थोड़ी देर बाद मैंने धीरे से मॉम के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। मॉम ने मेरी तरफ देखा लेकिन उन्होंने हाथ नहीं हटाया।
“गांव पहुंचने में कितना समय और लगेगा?” मैंने धीरे से पूछा।
मॉम ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया –
“अभी दो घंटे बाकी हैं… आराम से बैठ जा।”
लेकिन मैं आराम से बैठने के मूड में नहीं था।
मैंने मॉम के हाथ को सहलाते हुए उनकी उंगलियों को अपने हाथ में ले लिया। मॉम ने मेरी उंगलियों को हल्के से दबाया लेकिन कुछ कहा नहीं। बस के एक और झटके के साथ मैंने अपनी उंगलियां उनके ब्लाउज के पास रख दीं।
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“सौरभ, ये ठीक नहीं है…” मॉम ने धीमे से कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में वो सख्ती नहीं थी जो विरोध को दर्शाए।
मैंने उनकी ओर झुकते हुए फुसफुसाया –
“मॉम, कोई देख नहीं रहा… ”
मॉम ने मेरी ओर देखा और हल्का सिर झुका लिया। उन्होंने मेरी बात का जवाब नहीं दिया, लेकिन उनकी आंखों में एक अलग सी चमक दिखी जो मुझे आगे बढ़ने का इशारा कर रही थी।
अब बस में हल्की खामोशी थी, लेकिन मेरे और मॉम के बीच एक अलग ही खेल चल रहा था।
मैंने धीरे से मॉम की साड़ी के ऊपर से उनकी जांघों पर हाथ रखा। मॉम ने एक पल के लिए मेरी ओर देखा लेकिन उन्होंने विरोध नहीं किया।
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मैंने हल्के-हल्के उनकी जांघों को सहलाना शुरू कर दिया।
“सौरभ… बस ध्यान रखना, कोई देख न ले,” मॉम ने धीरे से कहा।
मैंने सिर हिलाया और अपना हाथ धीरे-धीरे उनकी साड़ी के नीचे सरकाने लगा। मॉम ने धीरे-धीरे अपनी टांगों को थोड़ा सा फैला लिया, जिससे मेरे हाथ के लिए जगह बन गई।
मुझे साफ महसूस हुआ कि मॉम की चूत पूरी तरह गीली हो चुकी थी।
मेरा लंड अब पूरी तरह खड़ा हो चुका था और लोवर के अंदर मुझे चुभ रहा था।
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मैंने धीरे से मॉम के कान में फुसफुसाया –
“मॉम, देखो न… मेरा लंड कितना सख्त हो गया है।”
मॉम ने मेरी तरफ देखा और हल्का मुस्कुराई।
“तू तो पागल है सौरभ… अपने बेटे के साथ ये सब ठीक नहीं है,” उन्होंने कहा, लेकिन उनके होंठों की मुस्कान ने साफ कर दिया कि वो खुद भी पीछे हटने के मूड में नहीं थीं।
बस के अगले झटके के साथ मैंने अपनी उंगलियां उनकी चूत के और करीब कर दीं।
अब मेरी उंगलियां मॉम की चूत को सहला रही थीं। मॉम ने धीरे से अपनी आँखें बंद कर लीं और सीट के कोने की तरफ झुक गईं, ताकि कोई हमारी हरकतें न देख सके।
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“आह… सौरभ… बस धीरे,” मॉम ने हल्के से कराहते हुए कहा।
मैंने उनकी चूत को हल्के-हल्के मसलते हुए उनकी निप्पल को भी ब्लाउज के ऊपर से दबा दिया। मॉम का पूरा बदन सिहर उठा था।
आगे बैठे कुछ यात्री हंसते हुए बात कर रहे थे।
“गांव पहुँचते ही पंडित जी की दावत मिल जाएगी,” एक आदमी ने कहा।
“हां, और उनकी बेटी भी खूब प्यारी है,” दूसरे ने मजाक में कहा।
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उनकी बातें सुनकर मैं मुस्कुराया और मॉम के कान में फुसफुसाया –
“मॉम, क्या आपके गांव की औरतें भी इतनी प्यारी हैं?”
मॉम ने मेरी ओर देखा और हल्की हंसी के साथ कहा –
“मुझे नहीं पता, लेकिन तू अब भी उन्हीं औरतों में दिलचस्पी ले रहा है?”
मैंने उनके निप्पल को हल्का सा दबाया और कहा –
“नहीं मॉम, मुझे सिर्फ आपसे मतलब है।”
थोड़ी देर बाद बस गांव के करीब पहुँचने लगी थी।
मॉम ने धीरे से अपनी साड़ी ठीक की और बालों को समेटने लगीं।
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“अब बस करो सौरभ, घर पहुंचकर देख लेंगे,” मॉम ने धीमे स्वर में कहा।
मैंने उनकी चूत पर एक आखिरी बार हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए कहा –
“ठीक है मॉम, लेकिन रात को मेरे कमरे में आना मत भूलना।”
मॉम ने हल्का सिर हिलाया और खिड़की से बाहर देखने लगीं।
जब हम गांव पहुंचे तो रात के 12 बज रहे थे। चाचा बोलेरो लेकर हमें लेने पहुंचे थे।
गाड़ी में बैठते समय मैंने मॉम के हाथ पर हल्का सा दबाव डाला और उन्होंने मेरी ओर देखा। उनकी आँखों में वही चमक थी जो बस में थी।
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“कल का दिन लंबा होगा मॉम… आप तैयार रहना,” मैंने कहा और मॉम हल्की मुस्कान के साथ गाड़ी में बैठ गईं।
गांव का सफर खत्म हो चुका था, लेकिन हमारी कहानी अब शुरू हो रही थी।
जब चाचा की बोलेरो घर के आंगन में रुकी, तो पूरा घर नींद में डूबा हुआ था। सिर्फ आंगन में हल्की रोशनी का एक बल्ब जल रहा था, जो घर की चौखट पर पड़े सामान और दीवारों पर हल्का सा अंधेरा फैला रहा था। चाचा ने धीरे से आवाज दी –
“भाभी, सामान यहीं रख दो। सुबह देख लेंगे। अंदर चलिए, सब सो रहे हैं।”
मॉम ने सिर हिलाया और मैं चुपचाप उनके पीछे चलते हुए सामान अंदर रखने लगा। चाचा ने हमें एक कमरे में ठहराया, जो आंगन के ठीक बगल में था।
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“आप आराम करो भाभी, मैं बाहर बरामदे में सो जाऊंगा।” चाचा ने कहा और बाहर चला गया।
मॉम ने दरवाजा बंद कर दिया। कमरे में एक पुराना पंखा छत से लटक रहा था, जो धीमे-धीमे घूम रहा था। मैं चटाई बिछाकर लेट गया, लेकिन मेरी नजरें मॉम पर टिकी थीं।
मॉम धीरे-धीरे अपनी साड़ी के पल्लू को ठीक कर रही थीं। उनका बदन सफर से थका हुआ था, लेकिन उनकी आंखों में जो गर्मी थी, वो मुझे साफ नजर आ रही थी।
“अभी भी घूर रहा है?” मॉम ने मेरी ओर देखा और हल्की मुस्कान दी।
“आप बहुत सुंदर लग रही हो मॉम… थक गई हो क्या?” मैंने धीरे से पूछा।
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मॉम ने बिना जवाब दिए तकिए पर सिर रख लिया। उनके पल्लू का एक सिरा नीचे गिर गया, जिससे उनकी उभरी हुई चूचियां साफ दिखाई दे रही थीं।
मुझे अब और रुकना मुश्किल लग रहा था। मैं चुपचाप उनके पास गया और धीरे से उनके बालों को सहलाने लगा।
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“सौरभ… क्या कर रहा है?” मॉम ने हल्की आवाज में कहा, लेकिन उन्होंने मुझे हटाया नहीं।
मैं उनके गालों पर हल्का सा चुंबन दिया और उनकी साड़ी के पल्लू को एक ओर कर दिया।
“मॉम… आपको पता है न कि मैं खुद को रोक नहीं पा रहा?”
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मॉम ने अपनी आँखें बंद कर लीं और हल्की आवाज में फुसफुसाईं –
“दरवाजा अंदर से बंद कर दे… कोई आ गया तो मुश्किल होगी।”
मैंने दरवाजे की कुंडी चढ़ा दी और वापस उनके पास आ गया।
कमरे में सिर्फ पंखे की आवाज थी। मैंने धीरे-धीरे मॉम की साड़ी को ऊपर खिसकाना शुरू किया। उनकी जांघें मेरे हाथों के नीचे थीं, गर्म और मुलायम।
मॉम ने अपनी टांगें हल्की फैला दीं, जिससे मेरे लिए रास्ता और आसान हो गया।
“सौरभ… तू सच में पागल हो गया है,” मॉम ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, जब मैंने उनके ब्लाउज के हुक खोलने शुरू किए।
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मैंने कोई जवाब नहीं दिया, बस उनके होंठों को चूम लिया।
अब मेरा लंड लोवर के अंदर खड़ा हुआ था और मुझे तकलीफ दे रहा था। मॉम ने धीरे से हाथ बढ़ाकर मेरा लंड सहलाना शुरू किया।
“मॉम… आज मैं आपको पूरी तरह से अपना बना लूंगा,” मैंने उनके कान में कहा।
मॉम ने धीरे-धीरे मेरे लोवर को नीचे खींचा और मेरा लंड उनके चेहरे के करीब आ गया। उन्होंने हल्के हाथों से उसे पकड़ा और अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया।
“आह… मॉम… यही… ऐसे ही,” मैंने सिसकारी भरते हुए कहा।
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उनकी जीभ मेरे लंड के हर हिस्से को छू रही थी। मैं उनके बालों में हाथ फेरते हुए उनकी चूचियों को सहला रहा था।
कुछ मिनट तक चूसने के बाद मैंने मॉम को बिस्तर पर लेटा दिया। उनकी चूत पहले से ही गीली थी।
“अभी मत करना… धीरे-धीरे,” मॉम ने फुसफुसाते हुए कहा, जब मैंने अपना लंड उनकी चूत के पास लगाया।
मैंने धीरे-धीरे लंड उनकी चूत के अंदर डालना शुरू किया। मॉम ने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपनी टांगें मेरी कमर के चारों ओर लपेट लीं।
“आह… सौरभ… धीरे…” मॉम ने कहा, जब मेरा लंड पूरी तरह उनकी चूत में घुस गया।
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मैं अब लगातार उनकी चूत को चोद रहा था। मॉम ने अपनी चूचियों को खुद पकड़ लिया और अपने निप्पल मसलने लगीं।
“तेरा लंड बहुत बड़ा है सौरभ… आह…” मॉम कराहते हुए बोलीं।
मैंने उनकी टांगें अपने कंधे पर रखीं और जोर-जोर से चुदाई करने लगा।
करीब 15 मिनट तक लगातार चुदने के बाद मैंने मॉम की चूत के अंदर ही अपना पानी छोड़ दिया। मॉम ने भी तेज सिसकारी ली और मुझे अपनी ओर खींच लिया।
हम दोनों पसीने से भीगे हुए थे। मैंने मॉम के होंठों को चूमा और उनके बगल में लेट गया।
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“सौरभ… तू अब मेरा बेटा नहीं, मेरा मर्द है,” मॉम ने मुस्कुराते हुए कहा और मेरे सीने पर हाथ फेरने लगीं।
सुबह चाचा ने दरवाजे पर दस्तक दी, जिससे हमारी नींद खुल गई। मॉम ने जल्दी से साड़ी ठीक की और दरवाजा खोलने चली गईं।
लेकिन मेरी नजरें मॉम की गांड पर टिकी थीं…
जब चाचा दरवाज़े से लौट गए, मॉम ने दरवाज़ा धीरे से बंद किया और मेरी ओर देखा। उनकी आंखों में रात की गर्मी अभी भी बाकी थी। वो हल्के कदमों से मेरे पास आईं और मेरे बगल में लेट गईं।
मैंने उनके बालों को सहलाते हुए कहा,
“मॉम, आपको पता है… आप अकेली नहीं हो जिसके साथ मैंने ये सब किया है।”
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मॉम ने मेरी तरफ देखा, उनकी भौंहें हल्की सी उठीं।
“मतलब?” मॉम ने पूछा।
मैंने उनकी चूचियों को धीरे से सहलाते हुए कहा,
“आपको नहीं लगता कि भाभी और दीदी भी बहुत सेक्सी हैं?”
मॉम का चेहरा हल्का सा लाल हो गया, लेकिन उन्होंने विरोध नहीं किया।
“सौरभ… तू क्या कहना चाहता है?”
मैं मॉम के निप्पल को अपनी उंगलियों से मसलते हुए मुस्कुराया।
“भाभी और दीदी को भी मैंने कई बार चोदा है… और भाभी तो खुद चाहती थी कि मैं दीदी को पटाऊं।”
मॉम के होंठ हल्के से फड़फड़ाए, लेकिन उनकी सांसें तेज हो गई थीं।
“क्या सच में? प्रीति और प्रिया के साथ?”
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मैंने मॉम के होंठों को चूमते हुए कहा,
“हां मॉम… प्रिया भाभी ने खुद मुझे सिखाया कि कैसे औरत को खुश किया जाता है।”
मॉम ने अपनी आँखें बंद कर लीं और हल्की सिसकारी ली जब मेरी उंगली उनकी चूत के अंदर गई।
“प्रीति… तेरी अपनी बहन है… और तूने उसे भी चोदा?”
मैंने हल्के से उनके कान में फुसफुसाया,
“हाँ मॉम… पहली बार प्रिया भाभी ने मुझे बहन के कमरे में भेजा था। प्रीति भी चुदने को तैयार थी। उसने खुद अपनी पैंटी उतारी थी।”
मॉम का बदन धीरे-धीरे मचलने लगा था। मैंने उनकी चूत पर उंगली तेज़ी से घुमाई और कहा,
“आपको पता है मॉम… प्रीति की चूत भी उतनी ही टाइट है जितनी आपकी है।”
मॉम ने मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में जलन और उत्तेजना दोनों दिख रही थीं।
“तूने सच में अपनी बहन को भी चोदा है सौरभ…?”
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मैंने हल्की मुस्कान दी और कहा,
“हां मॉम… और आज आप मेरी आखिरी औरत होंगी। अब इस परिवार में कोई ऐसा नहीं बचा जिसे मैंने चोदा न हो।”
मॉम ने मेरी ओर देखा और धीरे-धीरे मेरे लंड को अपने हाथ में लिया।
“फिर तो मुझे देखना पड़ेगा कि तू कितना मर्द बना है,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
मैंने मॉम को पलट दिया और पीछे से उनकी गांड पर कसकर पकड़ बनाई।
“आज आपको दिखाऊंगा कि भाभी और दीदी ने मुझे क्या सिखाया है,” मैंने कहा और अपना लंड उनकी चूत में धकेल दिया।